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Böcker av Bhagwan Singh

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  • av Bhagwan Singh
    401

    भाग्य-रेखा ' भीष्म साहनी का पहला कहानी- संग्रह है, जिसके साथ उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में कदम रखा था । वर्ष 1953 में प्रकाशित इस संग्रह ने उन्हें साहित्य-संसार में अपनी एक पहचान दी; जिसके माध्यम से हिन्दी समाज ने कथा में सहज प्रवाह की शक्ति को महसूस किया । भीष्म जी की कहानियों का ' मैं ' भी कभी लेखक के प्रतिनिधि होने का आभास नहीं देता, पात्रों और उनके यथार्थ के साथ उनकी इस एकात्मता को, जो शायद बहुत गहरी तटस्थता से ही सधती होगी बहुत कम लेखकों में चिह्नित किया जा सकता है । इस संग्रह में कई ऐसी कहानियाँ हैं जो भीष्म जी के गहरे मानवीय बोध को चिह्नित करती हैं और कुछ ऐसी हैं जो समकालीन समाज की अमानवीयता के प्रति पूणा का भाव भी पाठक के मन में जगाती हैं । उदाहरण के लिए ' क्रिकेट मैच ' जिसमें पति-पत्नी सम्बन्धों के बीच आया दुराव इतने कौशल के साथ उभारा गया है कि बहुत कुछ न कहते हुए भी कहानी हमें घर-परिवार को बचाए-बनाए रखनेवाली स्त्री- भूमिका के प्रति आलोचनात्मक हो जाने को प्रेरित करती है । ' नीली आँखें ' हाशिये पर रहनेवाले तबके के प्यार और शहरी पृष्ठभूमि में उसके प्रति असहिष्णु मध्यवर्गीय नजरिये को बेहद कारुणिक रूप में व्यक्त करती है । कहने की आवश्यकता नहीं कि भीष्म साहनी को चाहने वाले पाठक इस संग्रह को अमूल्य पाएँगे ।

  • av Bhagwan Singh
    501

  • av Bhagwan Singh
    417

    वाङ्चू वाङ्चू सुख्यात कथाकार भीष्म साहनी की ग्यारह कहानियों का संग्रह है। इन कहानियों में सोद्देश्यतानिर्वहन के साथ-साथ हृदयग्राही अन्तरंगता और रसमयता दर्शनीय है। इन्हें व्यापक सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखा गया है, किन्तु जीवन-सन्दर्भों के चयन में विविधता रखी गई है जिससे रोचकता और प्रभाव में वृद्धि हुई है। इस प्रसंग में संग्रह की एक कहानी 'वाङ्चू' - जिसके आधार पर पुस्तक का नामकरण हुआ है - और दूसरी कहानी 'राधा-अनुराधा' को ले सकते हैं। पहली में एक विस्थापित चीनी मानस की निरीहता का चित्रण है तो दूसरी, अभावों और यातनाओं में पली एक निम्नवर्गीय किशोरी नायिका के रोमांस की करुण उच्छ्वास-कथा है। 'ओ हरामजादे' शीर्षक व्यंग्यात्मक है, किन्तु कहानी प्रवासी भारतीय मानस की पीड़ा की परतों को खोलती है। इसी तरह और-और कहानियाँ मन पर अलग-अलग प्रभाव छोड़ती हैं तथा आज के सामाजिक जीवन की विषमताओं को रेखांकित करती हैं।

  • av Bhagwan Singh
    401

    सीधी सरल शब्दावली और सहज बिम्बों सामाकि यथार्थ की जटिल विडम्बनाओं को अभिव्यक्त करनेवाली भीष्म साहनी की कहानियाँ आज क्लासिक रचनाओं की श्रेणी में आती हैं। 1981 में पहली बार प्रकाशित उनका यह कहानी-संग्रह अपनी मूल्यपरक अर्थवत्ता और वैचारिक निष्ठा के चलते विशेष तौर पर सराहा गया था। शोभायात्रा की इन कहानियों में 'फैसला' के जज शुक्लाजी हों या 'रामचन्दानी' के रिटायर्ड अफसर रामचन्दानी-सही आदमी इस व्यवस्था में बराबर अव्यावहारिक और उपहास का विषय है। 'निमित्त' में यदि भाग्य और भगवान को ही कारण माननेवाले 'निमित्त मात्रों' की क्रूरता और चालाकी का कलात्मक खुलासा हुआ है तो 'शोभायात्रा' सत्ता के 'अहिंसा परमो धर्म'-रूपी ढोंग को उघाड़ती है। दूसरी ओर 'खिलौने' जैसी कहानी है, जिसमें बच्चे और खिलौने के माध्यम से आधुनिक जीवन की भयावह कैरियेरिस्ट संवेदनहीनता का मार्मिक चित्रण हुआ है। वस्तुगत यथार्थ और उसका दृष्टि सम्पन्न चित्रण, यही इस संग्रह की कहानियों की विशेषता है जिसके कारण इन्हें दशकों से एक ही लगाव के साथ पढ़ा जाता रहा है।

  • av Bhagwan Singh
    197

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