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Böcker av Jitender Nath

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  • av Jitender Nath
    197

    जितेन्द्र जयन्त सन 1994 से शिक्षा के क्षेत्र में प्राध्या पक के पद पर कार्य कर रहे हैं। नित्य प्रति बाल एवं युवा मन से उनका साक्षात्कार होता रहता है। सामाजिक सरोकारों से रूबरू प्रत्येक नागरिक की तरह से उन्हें भी होना होता है। कुछ बातें दिल में रह जाती है, कुछ दिमाग में कोलाहल के रूप में विद्यमान रहती हैं। आज के दौर में उपभोक्ता वादी व उन्मादी संस्कृति, सामाजिक एवं राज नैतिक संस्कृति में गिरावट के विरोध में स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में जितेन्द्र जयन्त की रचनाएँ अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराती हैं। स्वाभाविक रूप से कम बोलने वाले रचनाकार अपनी संजीदगी और संवेदनाओं को अपने शब्दों में सार्थक रूप प्रदान करते हैं। यदि इन बातों पर मौन धारण रखा जाए तो कायरता होगी और मौन के भंवर में संवेदनाएं एक भीषण चक्रवात में परिवर्तित हो सकती हैं। अत शब्द ही हैं जो भावनाओं को कि नारे लगाते हैं। यहीं कारण है इस पुस्तक के सामने आने का जिसका नाम है "मौन किनारे"।

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