Marknadens största urval
Snabb leverans

Böcker av Phanishwarnath Renu

Filter
Filter
Sortera efterSortera Populära
  • av Phanishwarnath Renu
    410,-

    पल्टू बाबू रोड' अमर कथाशिल्पी फनीश्वरनाथ रेणु का लघु उपन्यास है। यह उपन्यास पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'ज्योत्स्ना' के दिसंबर, 1959 से दिसंबर, 1960 के अंकों में धारावाहिक रूप से छपा था। रेणु के निधन के बाद 1979 में पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ। नई-नई कथाभूमियो की खोज करनेवाले रेणु 'पल्टू बाबू रोड' में एक कस्बे को अपनी कथा का आधार बनाते हैं। वे कठोर, विकृत और हासोंमुख समाज को लेखकीय प्रखरता के साथ परखते है। इस उपन्यास में रेणु अपने गाँव-इलाके को छोड़कर बैरगाछी कस्बे को कथाभूमि बनाते हैं। इस कस्बे की नियति पल्टू बाबू जैसे काईयां, धूर्त, कामुक बूढ़े के हाथ में है। उसने कस्बे के लिए ऐसी राह निर्मित की है जिस पर राजनीतिज्ञ, ठेकेदार, व्यापारी, वकील (पूरे कस्बे के लोग ही) चल रहे हैं। लगता है, कस्बावासी शतरंज के मोहरे हैं और पल्टू बाबू इनके संचालक। इस उपन्यास का लक्ष्य है उच्च वर्ग के अंतर्विरोधों, उसकी गिरावट, राजनितिक और आर्थिक संबंधों में यों-व्यापर आदि का चित्रण। निम्न वर्ग छिटपुट आया है। आदर्शवादी पत्र विडम्बना से घिरे है। भाषा प्रव्पूर्ण और अर्थव्यंजक है।

  • av Phanishwarnath Renu
    446,-

    कितने चौराहे' फणीश्वरनाथ रेणु का पठनीय लघु उपन्यास है । पहली बार यह 1966 में प्रकाशित हुआ । इस उपन्यास के वृत्तान्त में लेखक ने निजी जीवन की कई घटनाओं को संयोजित किया है ।. 'कितने चौराहे' की रचना का उद्]देश्य स्पष्ट है । यह उपन्यास आजादी के लिए संघर्ष करने और बलिदान देनेवाले युवकों को केन्द्र में रखकर लिखा गया है, ताकि आज के किशोरों में देशप्रेम, सेवा, त्याग आदि आदर्शों के भाव जाग्रत् हो सकें । यह उपन्यास व्यक्तिगत सुख-दुख, स्वार्थ-मोह से ऊपर उठकर देश के लिए जीने-मरने वालों कै मानवीय, संवेदनशील रूप को उभारता है । पाठकों के मन में यह वृत्तान्त श्रद्धा जाग्रत् करता है । पाठक के मन में चारों ओर चीखते भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता आदि के प्रति क्षोभ उभरता है । उत्सर्गी परम्परा के प्रति आकर्षण बढ़ता है । 'कितने चौराहे' में 'आंचलिकता का विश्वसनीय पुट, ज्वलन्त चरित्र सृष्टि, मार्मिक कथावस्तु और चरित्रानुकूल भाषा मोहित करती है । साधारण में निहित असाधारणता का उन्मेष सर्वोपरि है । रेणु के उपन्यास-शिल्प की अनेक विशेषताएँ इस रचना में दृष्टिगोचर होती हैं । शब्दों के बीच से बिम्ब झाँकते हैं, 'सूरज पच्छिम की ओर झुक गया । बालूचर पर लाली उतर.आई । परमान की धारा पर डूबते हुए सूरज की अन्तिम किरण झिलमिलाई ।' जीवन का जयगान करता उपन्यास ।

  • av Phanishwarnath Renu
    446,-

  • av Phanishwarnath Renu
    250,-

Gör som tusentals andra bokälskare

Prenumerera på vårt nyhetsbrev för att få fantastiska erbjudanden och inspiration för din nästa läsning.