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  • - उल्टी चले बयार (Rahib Ke Dohe - Ulti Chaley Bayaar)
    av Rahib
    246,-

    राहिब के दोहे भारत की महान काव्य परम्परा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें जहाँ एक और गूढ़ आध्यात्मिक दर्शन दिखाई पड़ता है वहीं दूसरी ओर आधुनिक जीवन की कठोर वास्तविकताओं का भी अनुभव होता है। राहिब के दोहे हमें गहरी होती नींद से यकायक झिंझोड़ कर जगाने का काम करते हैं। आधुनिक उपभोक्तावादी संस्कृति और बाजार के बढ़ते प्रभाव के बीच मानव मन की बेचैनी को प्रतिबिंबित करने में राहिब बेहद प्रभावी दिखाई पड़ते हैं। राहिब के दोहे न केवल मानव जीवन की विविध समस्याओं और व्यवस्थागत जटिलताओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हैं वरन उनके समाधान का मार्ग भी प्रस्तुत करते दिखाई पड़ते हैं। निश्चित रूप से राहिब के यह दोहे आने वाले अनेक युगों तक मानव समाज का मार्ग दर्शन और प्रतिनिधित्व करते रहेंगे। मेरा विश्वास है यह दोहा संग्रह हिन्दी-काव्य इतिहास की अमिट धरोहर के रूप में संजोया जाएगा।

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