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Böcker av Rajendra Rao

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  • av Rajendra Rao
    446,-

    इन दिनों हिंदी साहित्य में कथेतर गद्य को महत्त्व की दृष्टि से देखे जाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है और उसमें पाठकों की रुचि निरंतर अनुभव की जा रही है। कुछ अभिनव प्रयोग भी किए जा रहे हैं। वरिष्ठ कथाकार राजेंद्र राव ने संस्मरण, स्मृति-लेख और रेखाचित्र जैसी विधाओं की त्रिवेणी को कथात्मक संस्मरण के रूप में प्रस्तुत करकेकथा और कथेतर के बीच की फाँक को न्यूनतम करने का एक सफल रचनात्मक प्रयास किया है, जो कथात्मक संस्मरणों के इसअत्यंत पठनीय संकलन में द्रष्टव्य है। इनके बारे में लेखक का कहना है, स्मृति जैसे रंग-बिरंगे फलों से लदा वृक्ष है। इनमें कुछ मीठे हैं, कुछ खट्टे और कुछ कड़वे भी, मगर बेस्वाद कोई नहीं है। इनमें से कुछ को स्वाद की तीव्रता के क्रम से हम यादों में सँजोए रखते हैं कहानियों के रूप में। हर याद रह गए चेहरे के पीछे एक या एक से अधिक कहानी/कहानियाँ होती हैं। स्मृति-पटल पर गहरे खुदे व्यक्तियों के ये रेखाचित्र/संस्मरण न होकर उनकी कहानियाँ हैं। साप्ताहिक हिंदुस्तान और धर्मयुग में प्रकाशित राजेंद्र राव की धारावाहिक कथा-शृंखलाएँ 'सूली ऊपर सेज पिया की', 'कोयला भई न राख' और 'हम विषपायी जनम के' अत्यंत चर्चित और लोकप्रिय रही हैं। विश्वास है, कथात्मक संस्मरणों के इस सिलसिले का भी भरपूर स्वागत होगा।

  • av Rajendra Rao
    276,-

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