Om घर चलो माँ
इस कहानी संग्रह में बीस कहानियां हैं। सभी कहानियों के केन्द्र में बच्चे हैं, बच्चों का मनोविज्ञान है, बच्चों के माता-पिता हैं, बच्चों के शिक्षक हैं, बच्चों के पारिवारिक-सम्बन्ध हैं तथा बच्चों के आसपास का सामाजिक ताना-बाना है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद, देश का साक्षरता प्रतिशत बढ़ने के बाद, मध्यम-वर्ग का बैंक-बैलेंस बढ़ने के बाद, गलियों में एवं सड़कों पर कारों की संख्या बढ़ने के बाद तथा सोशियल मीडिया का महा-विस्फोट होने के बाद, हमारा बच्चा अपने युग-युगीन भोलेपन को पीछे छोड़कर समझदार, होशियार और दुनियादार होता जा रहा है। यह एक बड़ा परिवर्तन है किंतु यह परिवर्तन पूरे समाज के लिए कितना घातक है, इस पर कोई बात नहीं करना चाहता। इस संग्रह की कहानियों में इसी सच को उजागर किया गया है। रोचक ताने-बाने, चुटीले संवादों तथा सरल शब्दावली में लिखी गई ये कहानियाँ पाठक को आरम्भ से अंत तक बांधे रखने में सक्षम हैं।
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