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Anvaya: Sahitya Ke Parisar Mein Kunwar Narain - Khand: 1

Om Anvaya: Sahitya Ke Parisar Mein Kunwar Narain - Khand: 1

कुँवर नारायण ने लगभग सात दशकों का समृद्ध साहित्यिक जीवन जिया है। वे विश्व के श्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं। उनके रचना-संसार पर समय-समय पर लिखा जाता रहा है तथा अनेक मर्मज्ञ लेखकों, कवियों एवं शोधार्थियों ने उनके व्यक्तित्व और साहित्य पर कार्य किया है। उन पर अनेक ग्रन्थ लिखे व सम्पादित किए गए हैं और देशी-विदेशी संचयनों में उनकी कविताएँ शामिल हैं। अनेक भाषाओं में उनकी कृतियों के अनुवाद हुए हैं। उन्होंने अपनी कविता-यात्रा में हमें कई नायाब संग्रह दिए हैं। जहाँ उनकी कविताएँ स्मृति और परम्परा से सम्पन्न हैं, वहीं उनकी कहानियाँ किस्सागो के रूप में उनके अलग मिज़ाज की बानगी देती हैं। एक समालोचक और गद्यकार के रूप में उनकी आलोचना, निबन्ध, डायरी, सिने-विवेचन और भेंटवार्ताओं की पुस्तकें साहित्य, कला, जीवन, समाज, राजनीति और संस्कृति पर उनके सारभूत चिन्तन की विरल उदाहरण हैं। विश्व कवियों के उनके अनुवाद काव्यानुवाद कौशल के परिचायक हैं। वे उच्च काव्यादर्श के कवि हैं जिसका पूर्ण परिपाक उनके प्रबन्ध काव्यों में देखने को मिलता है। ऐसे उच्चादर्शों के लिए वे अतीत, इतिहास और मिथक के पास जाते हैं जिनसे रूबरू होते हुए हम अपने समय का एक आधुनिक प्रतिबिम्ब देख पाते हैं। उनकी कविता इसी सदाशयता की कविता है। बिना शोरोगुल के कविता में वह ऐसी शहदीली मिठास पैदा कर देते हैं कि उसे पढ़ते ही सृष्टि से प्यार हो उठे। कुँवर नारायण जितने अच्छे कवि, आलोचक और चिन्तक हैं, उतने ही अच्छे मनुष्य। उनसे मिलते हुए कभी उनके व्यक्तित्व का आतंक नहीं महसूस होता, अपने व्यक्तित्व की लघुता नहीं महसूस होती। उनके व्यक्तित्व और रचना-संसार पर हमारे समय के सुधी चिन्तकों और साहित्यिकों के आकलन का यह खंड उन पर लिखी गई समालोचना का एक श्रेष्ठ उपहार है। उन पर लिखे आलोचना

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  • Språk:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9789388183482
  • Format:
  • Inbunden
  • Sidor:
  • 418
  • Utgiven:
  • 1. november 2018
  • Mått:
  • 152x27x229 mm.
  • Vikt:
  • 780 g.
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Beskrivning av Anvaya: Sahitya Ke Parisar Mein Kunwar Narain - Khand: 1

कुँवर नारायण ने लगभग सात दशकों का समृद्ध साहित्यिक जीवन जिया है। वे विश्व के श्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं। उनके रचना-संसार पर समय-समय पर लिखा जाता रहा है तथा अनेक मर्मज्ञ लेखकों, कवियों एवं शोधार्थियों ने उनके व्यक्तित्व और साहित्य पर कार्य किया है। उन पर अनेक ग्रन्थ लिखे व सम्पादित किए गए हैं और देशी-विदेशी संचयनों में उनकी कविताएँ शामिल हैं। अनेक भाषाओं में उनकी कृतियों के अनुवाद हुए हैं। उन्होंने अपनी कविता-यात्रा में हमें कई नायाब संग्रह दिए हैं। जहाँ उनकी कविताएँ स्मृति और परम्परा से सम्पन्न हैं, वहीं उनकी कहानियाँ किस्सागो के रूप में उनके अलग मिज़ाज की बानगी देती हैं। एक समालोचक और गद्यकार के रूप में उनकी आलोचना, निबन्ध, डायरी, सिने-विवेचन और भेंटवार्ताओं की पुस्तकें साहित्य, कला, जीवन, समाज, राजनीति और संस्कृति पर उनके सारभूत चिन्तन की विरल उदाहरण हैं। विश्व कवियों के उनके अनुवाद काव्यानुवाद कौशल के परिचायक हैं। वे उच्च काव्यादर्श के कवि हैं जिसका पूर्ण परिपाक उनके प्रबन्ध काव्यों में देखने को मिलता है। ऐसे उच्चादर्शों के लिए वे अतीत, इतिहास और मिथक के पास जाते हैं जिनसे रूबरू होते हुए हम अपने समय का एक आधुनिक प्रतिबिम्ब देख पाते हैं। उनकी कविता इसी सदाशयता की कविता है। बिना शोरोगुल के कविता में वह ऐसी शहदीली मिठास पैदा कर देते हैं कि उसे पढ़ते ही सृष्टि से प्यार हो उठे। कुँवर नारायण जितने अच्छे कवि, आलोचक और चिन्तक हैं, उतने ही अच्छे मनुष्य। उनसे मिलते हुए कभी उनके व्यक्तित्व का आतंक नहीं महसूस होता, अपने व्यक्तित्व की लघुता नहीं महसूस होती। उनके व्यक्तित्व और रचना-संसार पर हमारे समय के सुधी चिन्तकों और साहित्यिकों के आकलन का यह खंड उन पर लिखी गई समालोचना का एक श्रेष्ठ उपहार है। उन पर लिखे आलोचना

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