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Dasha: दशाओं में फँसा आदमी

Om Dasha: दशाओं में फँसा आदमी

नाटककार मथुरा कलौनी की कलम से जीवन की भिन्न दशाओं एवं परिस्थितियों में फँसे मनुष्यों पर चार सशक्त लघु नाटकों का कोलाज है दशा।लंगड़ - श्रीलाल शुक्ल के कालजयी उपन्यास रागदरबारी का पात्र लंगड़ एक ऐसे धर्म की लड़ाई में फँसा है जहाँ व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार के नियम-कानून हैं। भ्रष्टाचार की आचारसंहिता है। नकलनबीस और लंगड़ के बीच का नैतिक द्वंद्व व्यवस्था में प्रच्छन्न भ्रष्टाचार पर स्पॉटलाइट है।तू नहीं और सही - लिव-इन रिलेशनशि]प की आड़ में रिश्तों की गहराई को तलाशती और जीवन से जूझती एक पूर्णतया भावनात्मक मोह-प्रलोभन से मुक्त नारी की व्यथा-कथा है।चिराग का भूत -घरेलू चिंताओं में फँसे एक आम आदमी को अलादीन का चिराग मिलता तो है पर जिन्न से क्या माँगे के संशय में वह जिन्न को नून-तेल-लकड़ी के जाल में इतना उलझा देता है कि जो परिणाम होता है वह कल्पनातीत है।कौन हो तुम बृहन्नला - बृहन्नला के प्रति उत्तरा की जिज्ञासा के माध्यम से समाज के हाशिये पर खड़े किन्नरों की दशा में झाँकता हुआ नाटक।

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  • Språk:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9798885916479
  • Format:
  • Häftad
  • Sidor:
  • 102
  • Utgiven:
  • 4. maj 2022
  • Mått:
  • 127x5x203 mm.
  • Vikt:
  • 109 g.
Leveranstid: 2-4 veckor
Förväntad leverans: 22. maj 2025

Beskrivning av Dasha: दशाओं में फँसा आदमी

नाटककार मथुरा कलौनी की कलम से जीवन की भिन्न दशाओं एवं परिस्थितियों में फँसे मनुष्यों पर चार सशक्त लघु नाटकों का कोलाज है दशा।लंगड़ - श्रीलाल शुक्ल के कालजयी उपन्यास रागदरबारी का पात्र लंगड़ एक ऐसे धर्म की लड़ाई में फँसा है जहाँ व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार के नियम-कानून हैं। भ्रष्टाचार की आचारसंहिता है। नकलनबीस और लंगड़ के बीच का नैतिक द्वंद्व व्यवस्था में प्रच्छन्न भ्रष्टाचार पर स्पॉटलाइट है।तू नहीं और सही - लिव-इन रिलेशनशि]प की आड़ में रिश्तों की गहराई को तलाशती और जीवन से जूझती एक पूर्णतया भावनात्मक मोह-प्रलोभन से मुक्त नारी की व्यथा-कथा है।चिराग का भूत -घरेलू चिंताओं में फँसे एक आम आदमी को अलादीन का चिराग मिलता तो है पर जिन्न से क्या माँगे के संशय में वह जिन्न को नून-तेल-लकड़ी के जाल में इतना उलझा देता है कि जो परिणाम होता है वह कल्पनातीत है।कौन हो तुम बृहन्नला - बृहन्नला के प्रति उत्तरा की जिज्ञासा के माध्यम से समाज के हाशिये पर खड़े किन्नरों की दशा में झाँकता हुआ नाटक।

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