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Ghar Se Van Tak

Om Ghar Se Van Tak

यह पुस्तक उष्णकटिबंधीय शुष्क वनों के पुनर्स्थापन के लिए अनुभव और पारंपरिक ज्ञान का एक ऐसा लेखा-जोखा है, जिसे समकालीन वैज्ञानिक शोध के प्रकाश में जाँचा- परखा और विश्लेषित किया गया है। इस जाँच- परख से प्रकट हुई समग्र दृष्टि उस भाषा में उन लोगों के लिए प्रस्तुत की गई है, जो प्रमाण- आधारित वन पुनर्स्थापन करना चाहते हैं। पुस्तक में सैद्धांतिक पक्ष को यथा-आवश्यकता संदर्भित किया गया है, तथापि मूल उद्देश्य लोगों के सम्मुख उपयोगी ज्ञान और समझ प्रस्तुत करना है। संयुक्त राष्ट्र के पारिस्थितिक तंत्र पुर्नस्थापन दशक 2021-2030 के दौरान प्रमाण-आधारित, क्रियान्वयन-योग्य रणनीति की आवश्यकता स्वाभाविक है। भारत उन देशों में से है, जहाँ इस कालावधि में व्यापक स्तर पर वन पुनर्स्थापन प्रस्तावित हैं। परंतु ऐसी चिंताएँ व्यक्त की गई हैं कि एक तो भारत में वन पुनर्स्थापन के बजाय वृक्षारोपण पर जोर है और दूसरे वृक्षागोपण भी तकनीकी रूप से ठीक नहीं हो रहे हैं। पानी, मिट्टी व वनों को बचाए बिना दुनिया की कोई सभ्यता या समाज फल-फूल नहीं सकता । यदि सही दिशा में प्रयतत किए जाए तो वर्ष 2021 से 2030 के मध्य पृथ्वी पर वनों और मानव का इतिहास बदला जा सकता है। आशा की जाती है कि इस पुस्तक में प्रस्तुत जानकारी धरातल पर उष्णकटिबंधीय शुष्क वनों के पुनर्स्थापन हेतु समुचित दिशा प्रदान करेगी ।

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  • Språk:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9789394534544
  • Format:
  • Inbunden
  • Sidor:
  • 290
  • Utgiven:
  • 4. augusti 2022
  • Mått:
  • 140x21x216 mm.
  • Vikt:
  • 517 g.
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Beskrivning av Ghar Se Van Tak

यह पुस्तक उष्णकटिबंधीय शुष्क वनों के पुनर्स्थापन के लिए अनुभव और पारंपरिक ज्ञान का एक ऐसा लेखा-जोखा है, जिसे समकालीन वैज्ञानिक शोध के प्रकाश में जाँचा- परखा और विश्लेषित किया गया है। इस जाँच- परख से प्रकट हुई समग्र दृष्टि उस भाषा में उन लोगों के लिए प्रस्तुत की गई है, जो प्रमाण- आधारित वन पुनर्स्थापन करना चाहते हैं। पुस्तक में सैद्धांतिक पक्ष को यथा-आवश्यकता संदर्भित किया गया है, तथापि मूल उद्देश्य लोगों के सम्मुख उपयोगी ज्ञान और समझ प्रस्तुत करना है। संयुक्त राष्ट्र के पारिस्थितिक तंत्र पुर्नस्थापन दशक 2021-2030 के दौरान प्रमाण-आधारित, क्रियान्वयन-योग्य रणनीति की आवश्यकता स्वाभाविक है। भारत उन देशों में से है, जहाँ इस कालावधि में व्यापक स्तर पर वन पुनर्स्थापन प्रस्तावित हैं। परंतु ऐसी चिंताएँ व्यक्त की गई हैं कि एक तो भारत में वन पुनर्स्थापन के बजाय वृक्षारोपण पर जोर है और दूसरे वृक्षागोपण भी तकनीकी रूप से ठीक नहीं हो रहे हैं। पानी, मिट्टी व वनों को बचाए बिना दुनिया की कोई सभ्यता या समाज फल-फूल नहीं सकता । यदि सही दिशा में प्रयतत किए जाए तो वर्ष 2021 से 2030 के मध्य पृथ्वी पर वनों और मानव का इतिहास बदला जा सकता है। आशा की जाती है कि इस पुस्तक में प्रस्तुत जानकारी धरातल पर उष्णकटिबंधीय शुष्क वनों के पुनर्स्थापन हेतु समुचित दिशा प्रदान करेगी ।

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