Marknadens största urval
Snabb leverans

Hum Hushmat: Vol. 3

Om Hum Hushmat: Vol. 3

'हम हशमत' हमारे समकालीन जीवन-फलक पर एक लंबे आख्यान का प्रतिबिंब है। इसमें हर चित्र घटना है और हर चेहरा कथानायक। 'हशमत' की जीवंतता और भाषायी चित्रात्मकता उन्हें कालजयी मुखडे़ के स्थापत्य में स्थित कर देती है। प्रस्तुत है 'हम हशमत' का तीसरा खंड। समकालीनों के संस्मरणों के बहाने, इस शती पर फैला हिंदी साहित्य समाज, यहाँ अपने वैचारिक और रचनात्मक विमर्श के साथ उजागर है। हिंदी के सुधी पाठकों और आलोचकों ने 'हम हशमत' को संस्मरण विधा में मील का पत्थर माना था; 'हम हशमत' की विशेषता है तटस्थता। कृष्णा सोबती के भीतर पुख्तगी से जमे 'हशमत' की सोच और उसके तेवर विलक्षण रूप से एक साथ दिलचस्प और गंभीर हैं। नज़रिया ऐसा कि एक समय को साथ-साथ जीने के रिश्ते को निकटता से देखे और परिचय की दूरी को पाठ की बुनत और बनावट में जज़्ब कर ले। 'हशमत' की औपचारिक निगाह में दोस्तों के लिए आदर है, जिज्ञासा है, जासूसी नहीं। यही निष्पक्षता नए-पुराने परिचय को घनत्व और लचक देती है और पाठ में साहित्यिक निकटता की दूरी को भी बरकरार रखती है। अपनी ही आत्मविश्वासी आक्रामकता की रौ और अभ्यास में पुरुष-सत्ता द्वारा बनाए असहिष्णु साहित्य-समाज में एक पुरुष का अनुशासनीय बाना धरकर कृष्णा जी ने 'हशमत' की निगाह को वह ताकत दी है जिसे सिर्फ पुरुष रहकर कोई मात्र पुरुष-अनुभव से सम्भव नहीं कर सकता, न ही कोई स्त्री, स्त्री की सीमाओं को फलाँगे बगैर साहित्य समाज की इस मानवीय गहनता को छू सकती है। ऐसा पाठ साहित्य और कलाओं में अर्द्धनारीश्वर की रचनात्मक सम्भावनाओं की ओर इंगित करता है। 'हशमत' के इस तीसरे खंड में शामिल हैं - सत्येन कुमार, जयदेव, निर्मल वर्मा, अशोक वाजपेयी, देवेन्द्र इस्सर, निर्मला जैन, विभूतिनारायण राय, रवीन्द्र कालिया, शम्भुनाथ, गिरधर राठी, आलोक मेहता और विष्णु खरे। 'हम हशमत' कृष्णा सो

Visa mer
  • Språk:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9788126723607
  • Format:
  • Inbunden
  • Sidor:
  • 186
  • Utgiven:
  • 1 Januari 2012
  • Mått:
  • 140x14x216 mm.
  • Vikt:
  • 386 g.
  Fri leverans
Leveranstid: 2-4 veckor
Förväntad leverans: 14 Oktober 2024

Beskrivning av Hum Hushmat: Vol. 3

'हम हशमत' हमारे समकालीन जीवन-फलक पर एक लंबे आख्यान का प्रतिबिंब है। इसमें हर चित्र घटना है और हर चेहरा कथानायक। 'हशमत' की जीवंतता और भाषायी चित्रात्मकता उन्हें कालजयी मुखडे़ के स्थापत्य में स्थित कर देती है। प्रस्तुत है 'हम हशमत' का तीसरा खंड। समकालीनों के संस्मरणों के बहाने, इस शती पर फैला हिंदी साहित्य समाज, यहाँ अपने वैचारिक और रचनात्मक विमर्श के साथ उजागर है। हिंदी के सुधी पाठकों और आलोचकों ने 'हम हशमत' को संस्मरण विधा में मील का पत्थर माना था; 'हम हशमत' की विशेषता है तटस्थता। कृष्णा सोबती के भीतर पुख्तगी से जमे 'हशमत' की सोच और उसके तेवर विलक्षण रूप से एक साथ दिलचस्प और गंभीर हैं। नज़रिया ऐसा कि एक समय को साथ-साथ जीने के रिश्ते को निकटता से देखे और परिचय की दूरी को पाठ की बुनत और बनावट में जज़्ब कर ले। 'हशमत' की औपचारिक निगाह में दोस्तों के लिए आदर है, जिज्ञासा है, जासूसी नहीं। यही निष्पक्षता नए-पुराने परिचय को घनत्व और लचक देती है और पाठ में साहित्यिक निकटता की दूरी को भी बरकरार रखती है। अपनी ही आत्मविश्वासी आक्रामकता की रौ और अभ्यास में पुरुष-सत्ता द्वारा बनाए असहिष्णु साहित्य-समाज में एक पुरुष का अनुशासनीय बाना धरकर कृष्णा जी ने 'हशमत' की निगाह को वह ताकत दी है जिसे सिर्फ पुरुष रहकर कोई मात्र पुरुष-अनुभव से सम्भव नहीं कर सकता, न ही कोई स्त्री, स्त्री की सीमाओं को फलाँगे बगैर साहित्य समाज की इस मानवीय गहनता को छू सकती है। ऐसा पाठ साहित्य और कलाओं में अर्द्धनारीश्वर की रचनात्मक सम्भावनाओं की ओर इंगित करता है। 'हशमत' के इस तीसरे खंड में शामिल हैं - सत्येन कुमार, जयदेव, निर्मल वर्मा, अशोक वाजपेयी, देवेन्द्र इस्सर, निर्मला जैन, विभूतिनारायण राय, रवीन्द्र कालिया, शम्भुनाथ, गिरधर राठी, आलोक मेहता और विष्णु खरे। 'हम हशमत' कृष्णा सो

Användarnas betyg av Hum Hushmat: Vol. 3



Hitta liknande böcker
Boken Hum Hushmat: Vol. 3 finns i följande kategorier:

Gör som tusentals andra bokälskare

Prenumerera på vårt nyhetsbrev för att få fantastiska erbjudanden och inspiration för din nästa läsning.