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Janos Arany: Kathageet evam Kavitayen

Om Janos Arany: Kathageet evam Kavitayen

यानोश आरन्य (1817-1882) हंगरी के महान कवि हैं और हंगरी अपने इस कवि की 200वीं जयंती मना रहा है। यानोश आरन्य निबन्धकार, आलोचक और अनुवादक भी रहे हैं। 'यानोश आरन्य कथागीत एवं कविताएँ' के इस संग्रह में उनकी कुछ कविताएँ और महाकाव्यात्मक अंश प्रस्तुत हैं। सुरेश सलिल, इंदु मज़लदन, इंदुकांत आंगिरस, हिमानी पाराशर और इंदरप्रीत कौर ने इन कविताओं का अनुवाद मारगित कोवैश के साथ किया है और गिरधर राठी ने सहयोग किया। इस संग्रह का सम्पादन मारगित कोवैश ने किया है।यानोश आरन्य हंगरी में उस समय एक संघर्ष चला जिसके अन्तर्गत हंगेरियन संस्कृति एवं साहित्य की स्वायत्त और जीवन्त सांस्कृतिक जड़ों का महत्त्व प्रस्तुत किया गया। इन प्रयासों में हंगेरियन राष्ट्रीय अभिजात वर्ग की भूमिका अहम रही। राष्ट्रीय आदर्श यानोश आरन्य और पैतोफि के कार्यों में प्रकट थे। राष्ट्रीय आभिजात्यवाद, मौखिक परम्परा और साहित्यिक कार्य में जनता, किसान और अन्य सामाजिक समूहों को शामिल किया गया। ये अठारहवीं शताब्दी में शुरू हुआ और पैतोफि और यानोश आरन्य के कार्यों में प्रभावशील रहा। पचास, साठ और सत्तर के दशक में पाल ज्युलोई (1826-1909) किश्फालुदी साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष थे और बुदापैश्त विश्वविद्यालय के प्राध्यापक रहे। पैतोफि की मृत्यु के बाद पचास, साठ और सत्तर के दशक में राष्ट्रीय आभिजात्यवाद के प्रस्तुत होने के बाद आरन्य की कविताओं में परिपक्वता आई जोकि उनकी लघु कविताओं और अनुवाद-कार्य में दृष्टिगोचर होती है।नाज्यकोरोश में स्थायी कार्य मिलने से पूर्व उन्हें तिसा परिवार में अध्यापन का कार्य मिला।इस संग्रह में संकलित अधिकतर कविताएँ पचास के दशक में रची गई थीं मसलन करार, मूँछ और वो भी क्या दिन थे; हालाँकि विद्वान की बिल्ली कविता का रचनाकाल सन् 1847 है।स्वतंत्रता-संग्राम की

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  • Språk:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9789387462182
  • Format:
  • Inbunden
  • Sidor:
  • 106
  • Utgiven:
  • 1. januari 2018
  • Mått:
  • 152x10x229 mm.
  • Vikt:
  • 327 g.
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Beskrivning av Janos Arany: Kathageet evam Kavitayen

यानोश आरन्य (1817-1882) हंगरी के महान कवि हैं और हंगरी अपने इस कवि की 200वीं जयंती मना रहा है। यानोश आरन्य निबन्धकार, आलोचक और अनुवादक भी रहे हैं। 'यानोश आरन्य कथागीत एवं कविताएँ' के इस संग्रह में उनकी कुछ कविताएँ और महाकाव्यात्मक अंश प्रस्तुत हैं। सुरेश सलिल, इंदु मज़लदन, इंदुकांत आंगिरस, हिमानी पाराशर और इंदरप्रीत कौर ने इन कविताओं का अनुवाद मारगित कोवैश के साथ किया है और गिरधर राठी ने सहयोग किया। इस संग्रह का सम्पादन मारगित कोवैश ने किया है।यानोश आरन्य हंगरी में उस समय एक संघर्ष चला जिसके अन्तर्गत हंगेरियन संस्कृति एवं साहित्य की स्वायत्त और जीवन्त सांस्कृतिक जड़ों का महत्त्व प्रस्तुत किया गया। इन प्रयासों में हंगेरियन राष्ट्रीय अभिजात वर्ग की भूमिका अहम रही। राष्ट्रीय आदर्श यानोश आरन्य और पैतोफि के कार्यों में प्रकट थे। राष्ट्रीय आभिजात्यवाद, मौखिक परम्परा और साहित्यिक कार्य में जनता, किसान और अन्य सामाजिक समूहों को शामिल किया गया। ये अठारहवीं शताब्दी में शुरू हुआ और पैतोफि और यानोश आरन्य के कार्यों में प्रभावशील रहा। पचास, साठ और सत्तर के दशक में पाल ज्युलोई (1826-1909) किश्फालुदी साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष थे और बुदापैश्त विश्वविद्यालय के प्राध्यापक रहे। पैतोफि की मृत्यु के बाद पचास, साठ और सत्तर के दशक में राष्ट्रीय आभिजात्यवाद के प्रस्तुत होने के बाद आरन्य की कविताओं में परिपक्वता आई जोकि उनकी लघु कविताओं और अनुवाद-कार्य में दृष्टिगोचर होती है।नाज्यकोरोश में स्थायी कार्य मिलने से पूर्व उन्हें तिसा परिवार में अध्यापन का कार्य मिला।इस संग्रह में संकलित अधिकतर कविताएँ पचास के दशक में रची गई थीं मसलन करार, मूँछ और वो भी क्या दिन थे; हालाँकि विद्वान की बिल्ली कविता का रचनाकाल सन् 1847 है।स्वतंत्रता-संग्राम की

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