Om Main Vastivk hoon
मैं वास्तविक हूँवास्तविकता से मुँह फेर लेता हूँ" an oft-time reading an in-time friend"The book presents collection of 177 ghazals and poems with pleasing flow of rhyme sensing delicacies of human mind and instinctively joins the reader.The compositions are in simple Hindi studded with a few Urdu words and phrases which add to the beauty of his creations.The title of this book is the opening line of a poem which portrays the reality of values of a our society vis-a-vis social realities. "आया था तेरे शहर मैं तो ख़ाली हाथ मुझे दुआ लग गई तेरी गली के फ़क़ीर से " "चंद तसवीरें मैं ने दीवार पे सजा रखीं हैं ऐसी ही मैंने अपनी दुनिया बसा रखी हैं " "दामन में मैं ने बचा कर रखें हैं कुछ अख़्तियार ठहरे पानी में पल रहे बिखरी यादों के सीप हैं"
Visa mer