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Ramvilas Sharma Ka Mahattva

Om Ramvilas Sharma Ka Mahattva

रामविलास शर्मा उन भारतीय लेखकों, विचारकों, बुद्धिजीवियों और माक्र्सवादी चिंतकों में अग्रणी हैं जिन्होंने अपने समय में लेखन के ज़रिये निरंतर और सार्थक हस्तक्षेप किया है। अपने समय और समाज की समस्याओं पर विचार किया है और उनके निदान भी सुझाए हैं।अपने पहले लेख 'निराला जी की कविता' में उन्होंने लिखा था, 'निराला जी की कविता नये युग की आँखों से यौवन को देखती हैं।' उन्होंने सदैव नये युग की आँखों को महत्त्व दिया। आज जब बहुत सारे युवाओं ने हथियार डाल दिए हैं, और लेखक-आलोचक उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-संरचनावाद जैसी बहसों में लिप्त हैं, हमें रामविलास जी की अडिगता, अविचलता और माक्र्सवादी दर्शन में अटूट आस्था तथा जन-संघर्षों में विश्वास को याद करने की ज़रूरत है।रामविलास शर्मा भारतेंदु हरिश्चन्द्र, महावीरप्रसाद द्विवेदी, प्रेमचन्द, आचार्य रामचंद्र शुक्ल और निराला की अगली कड़ी हैं। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि तुलसीदास को जो राम के नाम पर होता था वही अच्छा लगता था। देश और जनता के हित में जो होता है वह मुझे अच्छा लगता है। उनके लेखन की मुख्य चिंता हिन्दी और भारत रहे।संभवत बीसवीं सदी में विश्व की किसी और भाषा में कोई ऐसा दूसरा आलोचक नहीं है जिसने अपने जातीय समाज, जातीय भाषा और साहित्य के सम्बन्ध में एक साथ क्रांतिकारी स्थापनाएँ दी हों। वे साहित्य समीक्षक, सभ्यता समीक्षक और संस्कृति समीक्षक एक साथ रहे हैं। यह पुस्तक आज के भारत के सन्दर्भ में उनका पुनर्पाठ करने का प्रयास है. अपने लम्बे लेखन काल में उन्होंने जिन-जिन विषयों को व्यापक ढंग से छुआ उनके सम्बन्ध में उनके विचारों को दुबारा पढऩे का भी और वर्तमान घटाटोप में कोई रास्ता निकालने का भी।

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  • Språk:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9789387462427
  • Format:
  • Inbunden
  • Sidor:
  • 290
  • Utgiven:
  • 1. januari 2018
  • Mått:
  • 152x21x229 mm.
  • Vikt:
  • 594 g.
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Beskrivning av Ramvilas Sharma Ka Mahattva

रामविलास शर्मा उन भारतीय लेखकों, विचारकों, बुद्धिजीवियों और माक्र्सवादी चिंतकों में अग्रणी हैं जिन्होंने अपने समय में लेखन के ज़रिये निरंतर और सार्थक हस्तक्षेप किया है। अपने समय और समाज की समस्याओं पर विचार किया है और उनके निदान भी सुझाए हैं।अपने पहले लेख 'निराला जी की कविता' में उन्होंने लिखा था, 'निराला जी की कविता नये युग की आँखों से यौवन को देखती हैं।' उन्होंने सदैव नये युग की आँखों को महत्त्व दिया। आज जब बहुत सारे युवाओं ने हथियार डाल दिए हैं, और लेखक-आलोचक उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-संरचनावाद जैसी बहसों में लिप्त हैं, हमें रामविलास जी की अडिगता, अविचलता और माक्र्सवादी दर्शन में अटूट आस्था तथा जन-संघर्षों में विश्वास को याद करने की ज़रूरत है।रामविलास शर्मा भारतेंदु हरिश्चन्द्र, महावीरप्रसाद द्विवेदी, प्रेमचन्द, आचार्य रामचंद्र शुक्ल और निराला की अगली कड़ी हैं। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि तुलसीदास को जो राम के नाम पर होता था वही अच्छा लगता था। देश और जनता के हित में जो होता है वह मुझे अच्छा लगता है। उनके लेखन की मुख्य चिंता हिन्दी और भारत रहे।संभवत बीसवीं सदी में विश्व की किसी और भाषा में कोई ऐसा दूसरा आलोचक नहीं है जिसने अपने जातीय समाज, जातीय भाषा और साहित्य के सम्बन्ध में एक साथ क्रांतिकारी स्थापनाएँ दी हों। वे साहित्य समीक्षक, सभ्यता समीक्षक और संस्कृति समीक्षक एक साथ रहे हैं। यह पुस्तक आज के भारत के सन्दर्भ में उनका पुनर्पाठ करने का प्रयास है. अपने लम्बे लेखन काल में उन्होंने जिन-जिन विषयों को व्यापक ढंग से छुआ उनके सम्बन्ध में उनके विचारों को दुबारा पढऩे का भी और वर्तमान घटाटोप में कोई रास्ता निकालने का भी।

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