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JP Andolan 1974 (Research Book)

Om JP Andolan 1974 (Research Book)

"जे.पी. आंदोलन 1974" (रिसर्च बुक) संतोष सुमन, वरिष्ठ पत्रकार द्वारा लिखित, भारतीय इतिहास के एक निर्णायक क्षण, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 के आंदोलन पर एक गहन अध्ययन प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक उस ऐतिहासिक आंदोलन की कहानी कहती है जिसने उस दौर के सरकार की आपातकाल और भ्रष्टाचार के खिलाफ जनजागरण की अलख जगाई थी। लेखक ने उस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य का विस्तार से चित्रण किया है, जिसमें बढ़ती मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, और राजनीतिक अक्षमता के कारण जनता में असंतोष उत्पन्न हुआ था। पुस्तक में जेपी के विचारों और उनके "संपूर्ण क्रांति" के आह्वान को विस्तार से बताया गया है, जिसमें राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की मांग की गई थी। संतोष सुमन ने इस आंदोलन के प्रभाव और भारतीय राजनीति पर इसके दीर्घकालिक परिणामों पर भी प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि कैसे यह आंदोलन न केवल उस समय की सरकार के पतन का कारण बना, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की नई दिशा भी तय करने में सहायक बना। पुस्तक में साक्षात्कार, व्यक्तिगत अनुभवों, और लेखक के अवलोकनों के माध्यम से, यह आंदोलन न केवल एक ऐतिहासिक घटना के रूप में, बल्कि एक जीवंत कहानी के रूप में सामने आता है। यह पुस्तक आधुनिक भारतीय इतिहास में रुचि रखने वाले छात्रों, इतिहासकारों, और सामान्य पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, क्योंकि यह लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों के संदर्भ में आज भी प्रासंगिक है।

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  • Språk:
  • Engelska
  • ISBN:
  • 9789359887586
  • Format:
  • Inbunden
  • Utgiven:
  • 30 Januari 2024
  • Mått:
  • 140x216x24 mm.
  • Vikt:
  • 594 g.
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Beskrivning av JP Andolan 1974 (Research Book)

"जे.पी. आंदोलन 1974" (रिसर्च बुक) संतोष सुमन, वरिष्ठ पत्रकार द्वारा लिखित, भारतीय इतिहास के एक निर्णायक क्षण, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 के आंदोलन पर एक गहन अध्ययन प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक उस ऐतिहासिक आंदोलन की कहानी कहती है जिसने उस दौर के सरकार की आपातकाल और भ्रष्टाचार के खिलाफ जनजागरण की अलख जगाई थी।
लेखक ने उस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य का विस्तार से चित्रण किया है, जिसमें बढ़ती मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, और राजनीतिक अक्षमता के कारण जनता में असंतोष उत्पन्न हुआ था। पुस्तक में जेपी के विचारों और उनके "संपूर्ण क्रांति" के आह्वान को विस्तार से बताया गया है, जिसमें राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की मांग की गई थी।
संतोष सुमन ने इस आंदोलन के प्रभाव और भारतीय राजनीति पर इसके दीर्घकालिक परिणामों पर भी प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि कैसे यह आंदोलन न केवल उस समय की सरकार के पतन का कारण बना, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की नई दिशा भी तय करने में सहायक बना।
पुस्तक में साक्षात्कार, व्यक्तिगत अनुभवों, और लेखक के अवलोकनों के माध्यम से, यह आंदोलन न केवल एक ऐतिहासिक घटना के रूप में, बल्कि एक जीवंत कहानी के रूप में सामने आता है। यह पुस्तक आधुनिक भारतीय इतिहास में रुचि रखने वाले छात्रों, इतिहासकारों, और सामान्य पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, क्योंकि यह लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों के संदर्भ में आज भी प्रासंगिक है।

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